पलारी तहसील में कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा घूस लेते वीडियो वायरल, विष्णु सरकार की 'जीरो टॉलरेंस' नीति को लगाया जा रहा ठेंगा ?
छत्तीसगढ़: पलारी तहसील कार्यालय में भ्रष्टाचार का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। तहसील कार्यालय में नियुक्त ऑपरेटर लेख राम का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वह खुलेआम लोगों से रिश्वत मांगता नजर आ रहा है। वीडियो में वह यह कहते हुए सुना जा सकता है कि –
"मैं तो सिर्फ एक माध्यम हूँ, पैसा तो साहब को जाता है।"
इस वीडियो के सामने आने के बाद क्षेत्र में हड़कंप मच गया है। यह खुलासा इस बात का प्रमाण है कि किस प्रकार से सरकारी कार्यालयों में आम जनता को अपने ही अधिकारों के लिए रिश्वत देनी पड़ रही है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि तहसील कार्यालय में बिना पैसे दिए कोई भी ऑनलाइन कार्य आगे नहीं बढ़ाया जाता। चाहे नामांतरण हो, नक्शा या खसरा की नकल, या अन्य भूमि से जुड़ा काम – हर जगह पैसों की माँग की जाती है।
जनता की माँग:
दोषी ऑपरेटर लेख राम को तत्काल निलंबित किया जाए
तहसील कार्यालय की कार्यप्रणाली की उच्च स्तरीय जांच हो
सभी ऑनलाइन सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए
रिश्वत मांगने वाले अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई हो
यह वीडियो प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब देखना होगा कि जिम्मेदार अधिकारी इस पर क्या कार्रवाई करते हैं, या यह मामला भी बाकी मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा।
"जब रिश्वतखोरी का 'माध्यम' खुद स्वीकार कर रहा हो!"
पलारी तहसील कार्यालय से जो वीडियो सामने आया है, वह केवल एक व्यक्ति की करतूत नहीं, बल्कि सिस्टम की जड़ में फैले भ्रष्टाचार का आईना है। वीडियो में ऑपरेटर लेखराम खुद स्वीकार करता है – "मैं तो केवल एक माध्यम हूँ, पैसा तहसीलदार को जाता है।"
यह कथन सिर्फ एक बयान नहीं, एक गंभीर आरोप है – और वह भी एक ऐसे व्यक्ति की ओर से जो इस सिस्टम का हिस्सा है। यदि यह कथन सत्य है, तो इसका मतलब है कि भ्रष्टाचार नीचे से लेकर ऊपर तक फैला हुआ है।
क्या यह माना जाए कि आम जनता से ली जा रही रिश्वत केवल छोटे कर्मचारियों तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी पहुँच उन अधिकारियों तक भी है जिन पर न्याय और प्रशासन की ज़िम्मेदारी है? अगर लेखराम का बयान सही है, तो तहसीलदार जैसे उच्च पदों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं।
इस मामले में केवल ऑपरेटर को निलंबित या नापसंद करके प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। यह जरूरी है कि इस पूरे नेटवर्क की गंभीर और निष्पक्ष जांच हो। तहसील कार्यालय के सभी कार्यों की ऑडिट हो, और भ्रष्टाचार में शामिल सभी दोषियों पर कार्रवाई हो उसे भी कठोर दंड मिलना चाहिए।
आम नागरिक थक चुके हैं – हर सरकारी काम के लिए जेब ढीली करनी पड़ती है। यह बयान भी प्रशासन को न जगा पाए, तो सवाल ये उठता है कि फिर किस दिन न्याय मिलेगा?
अब वक्त आ गया है कि "माध्यम" नहीं, "मूल स्रोत" पर भी कार्यवाही हो
छत्तीसगढ़ के अधिकतर तहसील कार्यालय अब 'सेवा केंद्र' नहीं, बल्कि 'रिश्वत केंद्र' बनते जा रहे हैं। नामांतरण, नक्शा, खसरा, बी-1, भूमि विभाजन, जाति प्रमाण पत्र या आय प्रमाण पत्र – हर काम के लिए 'दर तय' है और 'बिना पैसे' कुछ नहीं होता।
हाल ही में पलारी तहसील से सामने आया वीडियो इस गंभीर समस्या का ताजा उदाहरण है, जिसमें ऑपरेटर लेखराम रिश्वत मांगते हुए दिखाई दे रहा है और साफ तौर पर कह रहा है – "मैं तो एक माध्यम हूं, पैसा साहब को जाता है।"
यह कोई पहला मामला नहीं है। राज्य के कई जिलों से लगातार ऐसी शिकायतें मिलती रही हैं कि तहसील कार्यालयों में आम नागरिकों से कार्य के बदले खुलेआम पैसों की मांग की जाती है। यह स्थिति न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है, बल्कि आम जनता के न्याय और अधिकार को भी छीन रही है।
प्रमुख समस्याएं जो उभरकर आई हैं:
ऑनलाइन सेवा होते हुए भी कार्य जानबूझकर रोके जाते हैं
हर दस्तावेज़ के लिए “रेट लिस्ट” तय रहती है
बिना दलालों के काम होना लगभग असंभव
रिश्वत नहीं देने पर फाइलें महीनों अटकी रहती हैं
जनता को बार-बार तहसील के चक्कर काटने पड़ते हैं
प्रशासन की चुप्पी: एक बड़ा सवाल
जनता का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि बार-बार वीडियो और शिकायतों के बावजूद प्रशासन सख्त कदम नहीं उठाता। अधिकांश मामलों में एक-दो कर्मचारियों को निलंबित कर, मामला दबा दिया जाता है। लेकिन ऊपरी स्तर के अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
क्या चाहिए जनता को?
सभी तहसीलों की स्वतंत्र जांच हो
ऑनलाइन सेवाओं को पूरी पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए
सीसीटीवी निगरानी और सही समय पर ऑडिट प्रणाली हो
रिश्वत मांगने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो
जनता के लिए शिकायत पोर्टल सक्रिय और प्रभावी बनाया जाए