तीन दिन की तामझाम, फिर वही जनता का संग्राम!
समाधान पेटी बनी दिखावा, जनदर्शन में जनता की भीड़ बनी गवाह
बलौदाबाजार:-
प्रदेश सरकार द्वारा सुशासन और जनसेवा को समर्पित "सुशासन तिहार" का प्रथम चरण 11 अप्रैल को संपन्न हो चुका है। इस महाअभियान के दौरान बलौदाबाजार जिले में 2 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें नागरिकों ने अपनी मांगें, आवश्यकताएँ और शिकायतें समाधान पेटी में डालकर सरकार तक पहुँचाईं।
जिले में 8 से 11 अप्रैल के बीच कुल 2,19,610 आवेदन दर्ज किए गए, जिनमें से 1,99,672 आवेदन ग्रामीण क्षेत्र से तथा 19,938 आवेदन शहरी क्षेत्र से प्राप्त हुए। आंकड़ों के अनुसार, 2,14,671 आवेदन मांगों से जुड़े हुए थे जबकि 4,939 आवेदन शिकायतों से संबंधित थे। इसके अतिरिक्त, जिले भर में संध्या चौपाल एवं गांव-गांव में राजस्व शिविरों का भी आयोजन किया गया।
लेकिन इन प्रयासों के बावजूद जनदर्शन कार्यक्रम में उमड़ी विस्तृत और असाधारण भीड़ ने सरकार की सुशासन नीति पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। आज जनदर्शन के दौरान कलेक्टर कार्यालय के बाहर बड़ी संख्या में लोग अपनी समस्याओं के समाधान की आस लेकर एकत्रित हुए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समाधान पेटी जैसे नवाचारों के बावजूद जनता अब भी राहत के लिए भटकने को मजबूर है।
विष्णुदेव सरकार के "सुशासन" के दावों पर आम जनता का यह विश्वास टूटता दिख रहा है। नागरिकों का कहना है कि समाधान पेटी सिर्फ तीन दिनों के लिए रखी गई और वह भी बिना किसी स्पष्ट फॉलोअप के, जिससे यह एक "प्रचारमूलक आयोजन" मात्र बन कर रह गया है। जनता को लग रहा है कि उनकी समस्याएँ सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई हैं और ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पायेगी ।
शिकायत-मांग आवेदनों का अंबार
आज कलेक्टर जनदर्शन में 70 नए आवेदन प्राप्त हुए, जबकि पहले से ही 103 आवेदन लंबित हैं। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री पोर्टल, मुख्यमंत्री सचिवालय, पीजीएन और ई-समाधान में कुल 163 आवेदन अब तक लंबित पड़े हैं। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि आम जनता की समस्याओं का निराकरण प्राथमिकता नहीं बन पा रहा है। जनता अपनी पीड़ा, जरूरतें और शिकायतें विभिन्न माध्यमों से बार-बार दर्ज करवा रही है, लेकिन समाधान की प्रक्रिया इतनी धीमी और जटिल है कि लोग थक कर भी उम्मीद नहीं छोड़ रहे। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता और संवेदनहीनता के बीच आम नागरिक अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए लगातार भटकने को मजबूर है—यह स्थिति न केवल सुशासन के दावों को खंडित करती है, बल्कि जनता के धैर्य और विश्वास की भी परीक्षा ले रही है।
सरकार की कोशिश बनाम ज़मीनी सच्चाई
जिले मे राजस्व शिविर, संध्या चौपाल और आवेदन संग्रह जैसे प्रयासों के बावजूद यदि नागरिकों को बार-बार कार्यालयों का चक्कर लगाना पड़े, तो यह निस्संदेह प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न खड़े करता है। यह तस्वीर सरकार की नीतियों और जनसरोकार के बीच बढ़ते फासले को उजागर करती है। "सुशासन तिहार" एक सराहनीय पहल हो सकती थी यदि इसे एक सतत प्रक्रिया के रूप में आगे बढ़ाया जाता, न कि कुछ दिनों का दिखावटी आयोजन बनाकर छोड़ दिया जाता। आज भी यदि आम नागरिक को अपनी समस्याओं के लिए जनदर्शन में भीड़ का हिस्सा बनना पड़ रहा है, तो यह साफ दर्शाता है कि समाधान अभी दूर है।